Sunday, 26 February 2017

भारत माँ के लाडले सपूत श्री वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि पर...

वीर सावरकर एक दुर्द्धर्ष क्रन्तिकारी थे। भारत माता के एक ऐसे सपूत जिन्होंने परतंत्रता की बेड़ियों से माँ को आजाद कराने के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
वीर सवरकर लिखित '' 1857 का स्वातंत्र्य समर '' प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे अधिकृत और प्रामाणिक कृति है।
भारत ही नहीं , संभवतः विश्व की यह पहली ऐसी कृति है , जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त है।
भगत सिंह समेत न जाने कितने जाने -अनजाने क्रांतिकारियों , भारत माता के वीर सपूतों के लिए यह '' प्रेरक कृति '' बन गयी। क्रांतिकारियों के लिए ''गीता'' बन गयी यह कृति।
1909 में 1857 की क्रांति की 50 वीं वर्षगांठ पड़ी। 1857 की 50 वीं वर्षगांठ को ब्रिटेन ने विजय दिवस के रूप में मनाया . सावरकर के नेतृत्व में भारतीय देशभक्तों ने 10 मई 1857 को
प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की 50 वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई। ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे भारतीय युवकों ने 1857 की स्मृति में अपनी छाती पर चमकदार बिल्ले लगाये। उपवास रखा , सभाएं की।
भारत के स्वतंत्र होने तक लड़ाई जारी रखने की प्रतिज्ञा ली गयी।
सावरकर के दृढ़ नेतृत्व में भारतीय छात्रों की संकल्प शक्ति के कारण अंग्रेजों को अपने ही घर में भारतीय राष्ट्रवाद के उग्र रूप का साक्षात्कार हुआ।
वीर सावरकर ने गहन अध्ययन और अपूर्व दृष्टि समपन्नता से 1857 के यथार्थ को दुनिया के सामने रखा और एक मामूली सिपाही विद्रोह के साम्राज्यवादी प्रचलन से उठाकर प्रथम भारतीय स्वातन्त्रय समर
के रूप में प्रतिष्ठापित किया। सबसे पहले उन्होंने मराठी में अपनी संघर्ष और शोध -साधना को लिपिबद्ध किया।
सावरकर जी ने लिखा --'' 10 मई , 1857 को शुरू हुआ युद्ध 10 मई 1908 को समाप्त नहीं हुआ है , वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक उस लक्ष्य को पूरा करनेवाली कोई अगली 10 मई आएगी। ओ महान शहीदों ! अपने पुत्रों के इस पवित्र संघर्ष में अपनी प्रेरणादायी उपस्थिति से हमारी मदद करो। हमारे प्राणों में भी जादू का वह मन्त्र फूंक दो जिसने तुमको एकता के सूत्र में गूंथ दिया था। ''
(10 मई 1908 को 1857 की क्रांति की वर्षगांठ पर सावरकर ने O Martyrs ! शीर्षक से अंग्रेजी में चार पृष्ठ लम्बे पम्फ्लेट्स की रचना की , जिसका इंडिया हाउस में आयोजित कार्यक्रम में तथा यूरोप व भारत में बड़े पैमाने पर वितरण किया गया। सभी समाचार पत्रों ने उस पम्फ्लेट्स को राजद्रोह और क्रांति की चिंगारी सुलगानेवाला बताया। )
वीर सावरकर द्वारा लिखित '' 1857 का स्वातंत्र्य समर '' ने भारत माता के महान सपूत शहीद भगत सिंह को बहुत अधिक प्रभावित किया था। इस ग्रन्थ का एक संस्करण भगत सिंह के क्रांतिकारी दल ने प्रकाशित किया।
 आजाद हिन्द फ़ौज के गठन में भी '' 1857 का स्वातंत्र्य समर '' की अहम भूमिका रही। रासबिहारी बोस जैसे महान क्रांतिकारी सावरकर को अपना गुरु मानते थे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उनके प्रति श्रद्धा रखते थे।
वीर सावरकर
भारत की स्वतंत्रता के लिए किए गए संघर्षों के इतिहास में भारत माता के वीर सपूत सावरकर का नाम बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। महान देशभक्त और क्रांतिकारी सावरकर ने अपना संपूर्ण जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। अपने राष्ट्रवादी विचारों के कारण जहाँ सावरकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे, वहीं देश की स्वतंत्रता के बाद भी उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा।
वीर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र में नासिक जिले के भागुर नामक गाँव में हुआ था। वर्ष 1883 में जन्में सावरकर तीन भाइयों में मंझले थे। उनके बड़े भाई का नाम नारायण दामोदर सावरकर था। सावरकर के माता-पिता अत्यन्त धार्मिक विचारों वाले ब्राह्मण दम्पत्ति थे। परिवार के धार्मिक वातावरण का प्रभाव तीनों सावरकर भाइयों पर पड़ा। भारत के महापुरुषों की कथाएँ सुनकर बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर महाराष्ट्र की धार्मिक तथा राष्ट्रवादी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे।
वीर सावरकर की प्रारम्भिक शिक्षा उनके गाँव की प्राइमरी पाठशाला में हुई। इसके पश्चात् वह बम्बई में शिक्षा प्राप्त करने लगे। एक तरफ जो देश अंग्रेजी शासन की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा उसके अत्याचारों से त्रस्त था, दूसरी ओर अनेक देशभक्त क्राँतिकारी देश को स्वतंत्र कराने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। बड़े भाई गणेश जो कि पहले से ही इन गतिविधियों से जुड़े थे, उन्हीं के प्रभाव से वीर सावरकर में देश-प्रेम और क्राँतिकारी की भावना जागृत हो उठी।
वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम राधाबाई सावरकर और पिता दामोदर पंत सावरकर थे। उनके माता-पिता राधाबाई और दामोदर पंत की चार संतानें थीं। वीर सावरकर के तीन भाई और एक बहन भी थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के शिवाजी स्कूल से हुयी थी। मात्र 9 साल की उम्र में हैजा बीमारी से उनकी मां का देहांत होगया। उसके कुछ वर्ष उपरांत उनके पिता का भी वर्ष 1899 में प्लेग की महामारी में स्वर्गवास हो गया। इसके बाद उनके बड़े भाई ने परिवार के भरण-पोषण का भार संभाला। सावरकर बचपन से ही बागी प्रवित्ति के थे। जब वे ग्यारह वर्ष के थे तभी उन्होंने ̔वानर सेना ̕नाम का समूह बनाया था। वे हाई स्कूल के दौरान बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए ̔शिवाजी उत्सव ̕और ̔गणेश उत्सव ̕आयोजित किया करते थे। बाल गंगाधर तिलक को ही सवारकर अपना गुरु मानते थे। वर्ष 1901 मार्च में उनका विवाह ̔यमुनाबाई ̕ से हो गया था। वर्ष 1902 में उन्होंने स्नातक के लिए पुणे के ̔फग्र्युसन कॉलेज में दाखिला लिया। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनके स्नातक की शिक्षा का खर्च उनके ससुर यानी यमुनाबाई के पिता ने उठाया।
राजनैतिक गतिविधियाँ
पुणे में उन्होंने ̔अभिनव भारत सोसाइटी ̕का गठन किया और बाद में स्वदेशी आंदोलन का भी हिस्सा बने। कुछ समय बाद वह बाल गंगाधर तिलक के साथ ̔स्वराज दल ̕में शामिल हो गए। उनके राष्ट्र भक्ति से ओप-प्रोत भाषण और स्वतंत्रता आंदोलन के गतिविधियों के कारण अंग्रेज सरकारने उनकी ग्रेजुएशन (स्नातक) की डिग्री ज़ब्त कर ली थी। वर्ष 1906 जून में बैरिस्टर बनने के लिए वे इंग्लैंड चले गए और वहां भारतीय छात्रों को भारत में हो रहे ब्रिटिश शासन के विरोध में संघर्ष के लिए एक जुट किया। उन्होंने वहीं पर ̔आजाद भारत सोसाइटी का गठन किया। सावरकर ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए हथियारों के इस्तेमाल की वकालत की थी और इंग्लैंड में ही हथियारों से लैस एक दल तैयार किया था। सावरकर द्वारा लिखे गए लेख ̔इंडियन’ और ̔तलवार’̕ नामक पत्रिका में प्रकाशित होते थे। वे ऐसे लेखक थे जिनकी रचना के प्रकाशित होने के पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी दौरान उनकी पुस्तक ̔द इंडियन वार ऑफ़ इंडिपेंडेंस 1857’ तैयार हो चुकी थी परंतु ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटेन और भारत में उसके प्रकाशित होने पर रोक लगा दी। कुछ समय बाद उनकी रचना मैडम भीकाजी की मदद से हॉलैंड में गुपचुप तरीके से प्रकाशित हुयी और इसकी प्रतियां फ्रांस पहुंची और फिर भारत भी पहुंचा दी गयीं। सावरकर ने इस पुस्तक में 1857 के ̔सिपाही विद्रोह' को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई बताया था।
वर्ष 1909 में मदनलाल धिंगरा, सावरकर के सहयोगी, ने वायसराय, लार्ड कर्जन पर असफल हत्या के प्रयास के बाद सर विएली को गोली मार दी। उसी दौरान नासिक के तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर ए.एम.टी जैक्सन की भी गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। इस हत्या के बाद सावरकर पूरी तरह ब्रिटिश सरकार के चंगुल में फंस चुके थे। उसी दौरान सावरकर को 13 मार्च 1910 को लंदन में कैद कर लिया गया। अदालत में उनपर गंभीर आरोप लगाये गए, और 50 साल की सजा सुनाई गयी। उनको काला पानी की सज़ा देकर अंडमान के सेलुलर जेलभेज दिया गया और लगभग 14 साल के बाद रिहा कर दिया गया। वहां पर उन्होंने कील और कोयले से कविताएं लिखीं और उनको याद कर लिया था। दस हजार पंक्तियों की कविता को जेल से छूटने के बाद उन्होंने दोबारा लिखा।
वर्ष 1920 में महात्मा गाँधी, विट्ठलभाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक ने सावरकर को रिहा करने की मांग की। 2 मई 1921 में उनको रत्नागिरी जेल भेजा गया और वहां से सावरकर को यरवदा जेल भेज दिया गया। रत्नागिरी जेल में उन्होंने ̔हिंदुत्व पुस्तक ̕की रचना की। वर्ष 1924 में उनको रिहाई मिली मगर रिहाई की शर्तों के अनुसार उनको न तो रत्नागिरी से बाहर जाने की अनुमति थी और न ही वह पांच साल तक कोई राजनीति कार्य कर सकते थे। रिहा होने के बाद उन्होंने 23 जनवरी 1924 को ̔रत्नागिरी हिंदू सभा’ का गठन किया और भारतीय संस्कृति और समाज कल्याण के लिए काम करना शुरू किया। थोड़े समय बाद सावरकर तिलक की स्वराज पार्टी में शामिल हो गए और बाद में हिंदू महासभा नाम की एक अलग पार्टी बना ली। वर्ष 1937 में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने और आगे जाकर भारत छोड़ो आंदोलन’ ̕का हिस्सा भी बने।

सावरकर वे पहले कवि थे, जिसने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षोंस्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुच गई। ---भारत कोश से साभार।
ग्रंथों की रचना
उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें ‘भारतीय स्वातंत्र्य युद्ध’, मेरा आजीवन कारावास’ और ‘अण्डमान की प्रतिध्वनियाँ’ (सभी अंग्रेज़ी में) अधिक प्रसिद्ध हैं। जेल में 'हिंदुत्व' पर शोध ग्रंथ लिखा। 1909 में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आज़ादी की पहली लड़ाई घोषित की थी।
भारत माँ के इस लाडले सपूत की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि कोटि नमन - बलप्रदा परिवार

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