जौ प्राचीन काल से #कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है...इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है, #संस्कृत में इसे #यव कहते हैं।
जौ के आटे की #रोटी का सेवन करने से #डायबिटीज नियंत्रित होता है।हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था... #वेद यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकार करते हैं।
Balprada Jansewa Ashram TRUST
#स्वाद और आकृति के दृष्टिकोण से जौ, गेहूँ से एकदम भिन्न दिखाई पड़ते हैं, किन्तु यह गेहूँ की प्रजाति का ही अन्न है। इसमें #ग्लूटेन की मात्रा कम होती है, यदि गुण की नज़र से देखा जाये तो जौ-गेहूँ की अपेक्षा हल्का होता है और #मोटा_अनाज भी होता है जो कि पूरे भारत में पाया जाता है।
जौ के दाने में 11.12 प्रतिशत #प्रोटीन, 1.8 प्रतिशत फाॅस्फोरस, 0.08 प्रतिशत #कैल्शियम तथा 5 प्रतिशत रेशा पाया जाता है। जौ खाद्यान में बीटा ग्लूकॉन की अधिकता और ग्लूटेन की न्यूनता जहाँ एक ओर मानव_रक्त में #कोलेस्ट्रॉल स्तर को कम करता है, वही दूसरी ओर सुपाच्यता व शीतलता प्रदान करता है।
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इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य #उत्तर_प्रदेश है जबकि #बिहार राज्य के कृषि क्षेत्र 5 प्रतिशत भाग पर जौ की कृषि की जाती है, साथ ही #राजस्थान, #मध्य_प्रदेश, #हरियाणा एवं #पंजाब में भी लगाया जाता है।
हमारे देश मे जौ का प्रयोग रोटी बनाने में किया जाता है जो #मधुमेह रोगियों के लिए काफी लाभदायक है। जौ और चना को भूनकर पीसकर #सत्तू के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा जौ का प्रयोग माल्ट बनाने में किया जाता है।
इसके सेवन से पेट सबंधी गड़वड़ी , वृक में पथरी बनना तथा आंत की गड़बड़िया दूर होती है। आज जौ का सबसे ज्यादा उपयोग पर्ल बारले, माल्ट, बियर, हॉर्लिक्स, मालटोवा टॉनिक, दूध मिश्रित बेवरेज आदि बनाने में बखूबी से किया जा रहा है। मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी इस खाद्यान्न फसल की सबसे बड़ी खूबी यह है की इसकी खेती करना बड़ा आसान है।
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